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Wednesday, May 2, 2012

|| दिखादे ‘श्याम’ वो रौनक जो वृन्दावन में होती थी ||

दिखादे ‘श्याम’ वो रौनक जो वृन्दावन में होती थी |
यमुना किनारे अठखेली जो सखियों के संग होती थी ||

निशाना पक्का था तेरा सखियों की मटकियो पर |
इल्जाम फिर भी होता था प्रभु उन्ही सखियों पर ||
तुझे नादान कह कर उन्ही की खिचाई खूब होती थी |
दिखादे ‘श्याम’ वो रौनक जो वृन्दावन में होती थी ||

कभी कपडे चुराते थे तो कभी मक्खन चुराते थे |
कभी मुहँ खोलकर वो ब्रह्माण्ड के दर्शन करवाते थे ||
देख करतब सब ओर तेरी जय जयकार होती थी |
दिखादे ‘श्याम’ वो रौनक जो वृन्दावन में होती थी ||

दलन दुष्टों का बचपन से ही खासा शौक था तेरा |
तुम्हारे नाम लेने से ही दूर हो जाता था अँधेरा ||
गुजर भक्तो की मुरली की सुरीली धुन पर होती थी |
दिखादे ‘श्याम’ वो रौनक जो वृन्दावन में होती थी ||
............श्याम

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