Saturday, February 25, 2012
ईमानदारी और भ्रष्टाचार-हिन्दी हास्य कविता:
भ्रष्टाचारी ने ईमानदार को फटकारा
‘‘क्या पुराने जन्म के पापों का फल पा रहे हो,
बिना ऊपरी कमाई के जीवन गंवा रहे हो,
अरे
इसी जन्म में ही कोई अच्छा काम करते,
दान दक्षिणा दूसरों को देकर
अपनी जेब भरने का काम भी करते,
लोग मुझे तुम्हारा दोस्त कहकर शरमाते हैं,
तुम्हारे बुरे हालात सभी जगह बताते हैं,
सच कहता हूं
तुम पर बहुत तरस आता है।’’
ईमानदार ने कहा
‘‘सच कहता हूं इसमें मेरा कोई दोष नहीं है,
घर में भी कोई इस बात पर कम रोष नहीं है,
जगह ऐसी मिली है
जहां कोई पैसा देने नहीं आता,
बस फाईलों का ढेर सामने बैठकर सताता,
ठोकपीटकर बनाया किस्मत ने ईमानदार,
वरना दौलत का बन जाता इजारेदार,
एक बात तुम्हारी बात सही है,
पुराने जन्म के पापों का फल है
अपनी ईमानदारी की बनी बही है,
यही तर्क अपनी दुर्भाग्य का समझ में आता है।
कवि, लेखक एवं संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर........
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