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Saturday, January 12, 2019

** क़दम मिलाकर चलना होगा॥ क़दम मिलाकर चलना होगा॥ क़दम मिलाकर चलना होगा॥ **

बाधाएँ आती हैं आएँ,
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ,
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा,
क़दम मिलाकर चलना होगा।

हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा,
क़दम मिलाकर चलना होगा।

उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा,
क़दम मिलाकर चलना होगा।

सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढ़लना होगा,
क़दम मिलाकर चलना होगा।

कुछ काँटों से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा,
क़दम मिलाकर चलना होगा।

जय हिन्द, जय भारत !
~शिव मोहन मिश्रा

Wednesday, October 31, 2012

પપ્પા...આઈ મીસ યુ.................

દુનિયાને છોડી જનારની રાહ આજેય કેમ જોવાય છે?
એકાંતમાં આપની યાદમાં આંખો કેમ છલકાય છે?
દુનિયામાં નથી અટકતું જીવન કોઈના વગર..તો પણ,
"પપ્પા" આપની કમી આજેય કેમ બહુ વરતાય છે?
 
© જીગ્નેશ એન પંડયા(બાવળા)

Tuesday, October 23, 2012

મંજીલની તલાસમાં..............23/10/2012

મંજીલની તલાસમાં ભટકતા ભટકતા,
મુશ્કેલ પરિસ્થિતિમાં આગળ વધતા,
નિશ્ચિત ધ્યેયને પામવા હાર નાં માનતા,
અંતિમ શ્વાસ સુધી મંજીલને પામવા ભટકતા.

મંજીલની રાહમાં થાક નાં ખાતા આગળ વધતા,
કપરા ચઢાણો ને ઉબડ ખાબડ રસ્તે ચાલતા,
દરેક સમસ્યાનો બહાદુરીથી સામનો કરતા કરતા,
અંતે મંજીલની ટોચ પર પહોચવાનો આંનદ માણતા.
>>>©રચના-જીગ્નેશ એન પંડયા(દેશપ્રેમી)<<<

Monday, October 22, 2012

એકાંતની પળોમાં....................

એકાંતની પળોમાં વિરહની વેદનાથી પીડાતો હું,
દુનિયાથી અલિપ્ત "શુન્યાવકાશ" મસ્તીષકથી વિચારતો હું,
જીવનની દરેક આટી-ઘુટી માંથી પસાર થયેલ હું,
દરેક પરિસ્થિતિને અનુરૂપ ઢાંચામાં ઢળાઈ ગયેલ હું.
©રચના-જીગ્નેશ એન પંડયા(દેશપ્રેમી) - બાવળા

Friday, September 21, 2012

©રચના -લડીએ છીએ!! -જીગ્નેશ એન પંડયા (દેશપ્રેમી)


અમો સમયની વિરુદ્ધ દિશાની વિમુખ લડીએ છીએ,
પરિવાર સાથે પણ પરિસ્થિતિ વિરુદ્ધ લડીએ છીએ,

સંજોગો વિપરીત હોય ભલે તો પણ લડીએ છીએ,
પરિણામ હોય ભલે વિરુદ્ધ તોય અમે લડીએ છીએ,

મોતની સામે જીવન માટે દરરોજ અમે લડીએ છીએ,
પ્રભુ હોય સાથ આપનો તો દુનિયા સામે લડીએ છીએ,


અંતિમ શ્વાસ સુધી હાર સામે જીતવા અમો લડીએ છીએ,
ફળની ચિંતા કોને છે?,અમે મહેનત કરીને લડીએ છીએ,

તોફાનો સામે અમો મધ-દરિયે જઈ રોજ લડીએ છીએ,
મોતનાં ખેલ આદત થઇ હવે અમે તોય લડીએ છીએ,
 
©રચના -લડીએ છીએ!! -જીગ્નેશ એન પંડયા (દેશપ્રેમી)

Tuesday, September 18, 2012

વ્યથા મારા દિલની....

વ્યથા મારા દિલની કોને કહું? હસે છે ચહેરો ને રડે છે મન,
સમજી શકે મારા દિલની વ્યથાને એ હૃદયને કહું મારું દર્દ.
©રચના -જીગ્નેશ એન પંડયા (દેશપ્રેમી)

Friday, September 14, 2012

क्योंकि मैं आम आदमी हूँ....हाँ...हाँ.. मैं आम आदमी हूँ ...

क्योंकि मैं आम आदमी हूँ....हाँ...हाँ.. मैं आम आदमी हूँ ...

तुम देश और जनता का पैसा लूटो .... राष्ट्र-विरोधी ताकतों से तुम्हारी साँठ-गाँठ हो..... तुम ईश्वर और संविधान की शपथ लो और ऐसे घृणित कार्य सीना ठोक कर करो जिस की कल्पना मात्र से शायद ईश्वर भी घबराता होगा और संविधान निर्माताओं की सोच भी वहाँ तक नहीं पहुँची होगी .....फ़िर भी तुम भारत-रत्न के अधिकारी हो.....तुम राष्ट्र की सुरक्षा के लिए बने उप

करणों की खरीद-फ़रोख्त में दलाली खाओ... फ़िर भी तुम नमन के हकदार हो ... तुमने तो ताबुतों पर भी मलाई खाई....शायद तुम्हारा हक होगा ??...अपनी काली और स्याह करतूतों को गाँधी की खादी से ढ़ंको ... तुमने जनतंत्र के मंदिर पर अपना कब्जा जो जमा रखा है इसलिए तुम्हारे हजारों-लाखों खून माफ़ हैं... मैं अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति करूँ तो मैं राष्ट्र-द्रोही... क्योंकि मैं आम आदमी हाँ..हाँ... मैं आम आदमी हूँ...

अभी तुमने देश में सेंसरशिप और आपातकाल की घोषणा नहीं की है..... लेकिन यह अघोषित आपातकाल है , संक्रमणकाल है जो और भी दुखद है, और भी खतरनाक है ... अजीब विडम्बना है तुम इस देश में नफरत भड़काने वाले भाषण से तो बच सकते हो..... दंगों और धार्मिक उन्माद की पटकथा तुम लिखते हो....लेकिन राजनीतिक व्यंग्य के बाद मैं तुरंत गिरफ्तार किया जाता हूँ क्योंकि मैं आम आदमी हूँ....हाँ...हाँ.. मैं आम आदमी हूँ ...

तुम राष्ट्र-गौरव के प्रतीक लाल किले की प्राचीर पर राष्ट्र-ध्वज के साये में हम से झूठे वादे करो...क्योंकि यही तुम्हारा राष्ट्र-प्रेम है.... मैं भूख की जद्दो-जहद से जूझता रहूँ लेकिन मौन रहूँ .....तुम मेरे पैसे के उजाले से रौशन रहो....मैं गुमनामी के साये में अपने वजूद को ढ़ूँढ़ता रहूँ...क्योंकि मैं आम आदमी हूँ....हाँ...हाँ.. मैं आम आदमी हूँ ....

मैं कुछ ना देखूँ , कुछ ना सुनूँ और कुछ ना बोलूँ... क्योंकि मैं गाँधी जी के बन्दर का "नया संस्करण हूँ "...मैं तुम्हारे ईशारे पर दुम हिलाऊँ और भौंकूँ क्योंकि मैं तुम्हारे तंत्र का कुत्ता हूँ...मच्छरों की भाँति मरना मेरी नीयति है और बुलेट-प्रूफ़ जैकेट तुम्हारा अधिकार है..... तो मैं कहाँ जाऊँ....?? कहाँ रोऊँ ?? कहाँ चिल्लाऊँ ?? कहाँ से अपने राष्ट्र- प्रेम का सर्टिफ़िकेट (प्रमाण-पत्र ) लाऊँ..?? क्योंकि मैं आम आदमी हूँ....हाँ...हाँ.. मैं आम आदमी हूँ ...
BY:EK ANJAN AAMAADAMI KI VYATHA