रवीन्द्रनाथ टैगोर को जब नोबल पुरस्कार से नवाजा गया था, तो उस समय
अंग्रेजी में उनकी संक्षिप्त जीवनी लिखी गई थी जिसे कि Les Prix Nobel
पुस्तक श्रंखला में प्रथम बार प्रकाशित किया गया था। अंग्रेजी में लिखा गया
रवीन्द्रनाथ टैगोर का वह जीवन परिचय नोबलप्राइज.ऑर्ग में उपलब्ध है (लिंक है – Rabindranath Tagore) । प्रस्तुत है उसी अंग्रेजी लेख का हिन्दी भावानुवाद http://www.nobelprize.org/nobel_prizes/literature/laureates/1913/tagore.html
वास्तव में कहा जाए तो रवीन्द्रनाथ टैगोर उन साहित्य-स्रष्टाओं में से एक हैं जिन्हें भाषा स्थान, काल की सीमाओं में बाँधा ही नहीं जा सकता। उनकी कीर्ति अक्षय है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) देबेन्द्रनाथ टैगोर के कनिष्ठ पुत्र थे, देबेन्द्रनाथ ब्रह्मसमाज, जो कि उन्नीसवीं सदी के बंगाल का एक नया धार्मिक पंथ था तथा उपनिषद में वर्णित परम वेदान्त के आधार पर हिन्दू धर्म के पुनरुद्धार के उद्देश्य से बना था, के प्रमुख थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा-दीक्षा घर में ही हुई थी, यद्यपि सत्रह वर्ष की आयु में उन्हें औपचारिक शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया, किन्तु उन्होंने वहाँ पर वे अपनी शिक्षा पूर्ण न कर सके। परिपक्व अवस्था प्राप्त होने पर उन्हें अपने बहु-आयामी साहित्यिक गतिविधियों के अलावा अपने पारिवारिक भू-संपदा की व्यवस्था भी करनी पड़ी जिसके कारण वे सामान्य लोगों के सम्पर्क में आए और सामाजिक सुधारों के प्रति उनकी रुचि विकसित हुई। साथ ही उन्होंने शान्तिनिकेतन में एक प्रयोगात्मक स्कूल का संचालन भी आरम्भ कर दिया जिसमें वे उपनिषदों में निहित आदर्शों की शिक्षा देने का प्रयास करते थे। समय समय पर उन्होंने गैर भावुक तथा दूरदर्शी तरीकों से भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलनों में भी भाग लिया तथा आधुनिक भारत के राजनीतिक पिता गांधी उनके समर्पित मित्र थे। टैगोर को 1915 में सत्तारूढ़ ब्रिटिश सरकार ने नाइट की उपाधि प्रदान की, लेकिन कुछ ही वर्षों के भीतर उसे उन्होंनें भारत में ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ एक विरोध के रूप में वापस कर दिया।तो यह था रवीन्द्रनाथ टैगोर का वह परिचय जिसे कि उन्हें नोबल पुरस्कार प्रदान करते समय लिखा गया था। किन्तु इसके अलावा भी उनके विषय में अनेक उल्लेखनीय बाते हैं जैसे कि -
जल्दी ही वे अपनी मातृभूमि बंगाल में सफल लेखक के रूप में ख्याति मिल गई। उनकी कुछ कविताओं के अनुवाद के कारण उन्होंने पश्चिम में भी अपनी पहचान बना ली। वास्तव में उनकी ख्याति ऊँचाइयों को छूने लगी और उन्हें व्याख्यान तथा मित्रता के उद्देश्य से महद्वीपों की यात्राएँ करवाने लगी। संसार के लिए वे भारत की आध्यात्मिक विरासत की आवाज बन गए, और भारत के लिए, वशेषतः बंगाल के लिए, वे एक जीती-जागती महान संस्था बन गए। यद्यपि उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई किन्तु मूलतः वे एक कवि थे।
उनके पचास बेजोड़ कविता संग्रहों में से कुछ हैं – मानसी (1890) [एक आदर्श], सोनार तारी (1894) [सुनहरी नाव], गीतांजलि (1910) [गीत प्रस्तुति], गीतिमाल्य (1914) [गानों का पुष्पहार], और बालक (1916) [क्रेन की उड़ान]। उनकी कविताओं के अंग्रेजी प्रस्तुतीकरण, जिसमें Gardener (1913), Fruit-Gathering (1916), और The Fugitive (1921) शामिल हैं, आम तौर पर मूल बंगाली प्रस्तुति के अनुरूप नहीं हैं किन्तु उनमें से अधिकतर प्रशंसित हैं।
टैगोर के प्रमुख नाटक हैं राजा (1910) [अंधेरी कोठरी का राजा], डाकघर (1912) [पोस्ट ऑफिस], अचलायतन (1912) [अचल], मुक्तधारा (1922) [झरना], और रक्तरवि (1926)। उन्होंने अनेक लघुकथाओं तथा उपन्यासों की भी रचना की है जिनमें से कुछ हैं – गोरा (1910), घरे-बारे (1916), और योगायोग (1929)। इसके अतिरिक्त उन्होंने संगीत नाटक, नृत्य नाटक, सभी प्रकार के निबंध, यात्रा डायरी, और दो आत्मकथाएँ भी लिखी हैं। टैगोर ने हमें अनेक चित्रकारी तथा पेंटिंग्स और गीत, जिनके लिए उन्होंने स्वयं सगीत रचना भी की थी, प्रदान किए हैं।
- उन्होंने एक हजार से भी अधिक कविताओं तथा दो हजार से भी अधिक गीतों की रचना की है!
- वे एक संगीतकार, अभिनेता, गायक और जादूगर भी थे!
- उनके लिखे गीत दो देशों के राष्ट्रगान हैं – एक भारत का और दूसरा बँगलादेश का!
- आज भी बंगाल में उनके गीत-संगीत के बगैर कोई समारोह शुरू नहीं होता!
वास्तव में कहा जाए तो रवीन्द्रनाथ टैगोर उन साहित्य-स्रष्टाओं में से एक हैं जिन्हें भाषा स्थान, काल की सीमाओं में बाँधा ही नहीं जा सकता। उनकी कीर्ति अक्षय है।
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