इतना शेयर करे की हर हिन्दुस्तानी जान सके ......
की सेना के जवानों के साथ कैसा सलूक होता है .
सियाचिन की अमानवीय परिस्थितियों में अपूर्व पराक्रम दिखाते हुए 1987 में एक पाकिस्तानी चौकी पर कब्जा जमाने वाले "परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह" आज अपने हालात और सरकारी रवैये से बेहद हताश हैं। इस मेडल के लिए मानदेय के रूप में आज भी 166 रुपये की मासिक रकम पाने वाले कैप्टन सिंह बुरी तरह टूट चुके हैं। वह इस बात पर शर्मिंदा हैं कि कभी उन्होंने इस देश की सेवा की।
सालों तक मातृभूमि की नि:स्वार्थ सेवा करने वाले कैप्टन सिंह ने सियाचिन ग्लेशियर में जिस वीरता का परिचय दिया, उसके लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने पाकिस्तान की सबसे अहम चौकी 'कैद' पर कब्जा जमाया था। बाद में उनके सम्मान में इस चौकी का नाम बदलकर 'बाना पोस्ट' कर दिया गया। परमवीर चक्र के लिए बाना को 166 रुपये मासिक की मानदेय राशि तय की गई, जो आज भी उतनी ही दी जाती है। उन्होंने यह राशि बढ़वाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार से कई बार गुजारिश की। इधर-उधर भी हाथ पैर मारे, लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए।
उन्होंने कहा, मुझे शर्म आती है कि मैंने अपने देश की सेवा की। सरकार हमारे साथ ऐसा रूखा बर्ताव करती है, मानो हम भिखारी हों। कैप्टन सिंह कहते हैं, जब एक आतंकवादी सरेंडर करता है, तो उसे 2000 रुपये मिलते हैं और मुझे देश की सेवा के बदले 166 रुपये। मैं अपमानित और असहाय महसूस कर रहा हूं। अगर सरकार का रवैया यही रहा, तो मैं परमवीर चक्र लौटा दूंगा।
इससे प्रमाणित होता है कि किस तरह से हमारे देश के रक्षक सरकार की अवहेलना और उपेक्षाओं के शिकार हैँ।
शर्म करो भारत सरकार !!! शर्म करो भारत सरकार !!! शर्म करो भारत सरकार !!!
***** इतना शेयर करे की हर हिन्दुस्तानी जान सके *****
की सेना के जवानों के साथ कैसा सलूक होता है .
सियाचिन की अमानवीय परिस्थितियों में अपूर्व पराक्रम दिखाते हुए 1987 में एक पाकिस्तानी चौकी पर कब्जा जमाने वाले "परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बाना सिंह" आज अपने हालात और सरकारी रवैये से बेहद हताश हैं। इस मेडल के लिए मानदेय के रूप में आज भी 166 रुपये की मासिक रकम पाने वाले कैप्टन सिंह बुरी तरह टूट चुके हैं। वह इस बात पर शर्मिंदा हैं कि कभी उन्होंने इस देश की सेवा की।
सालों तक मातृभूमि की नि:स्वार्थ सेवा करने वाले कैप्टन सिंह ने सियाचिन ग्लेशियर में जिस वीरता का परिचय दिया, उसके लिए उन्हें सर्वोच्च वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने पाकिस्तान की सबसे अहम चौकी 'कैद' पर कब्जा जमाया था। बाद में उनके सम्मान में इस चौकी का नाम बदलकर 'बाना पोस्ट' कर दिया गया। परमवीर चक्र के लिए बाना को 166 रुपये मासिक की मानदेय राशि तय की गई, जो आज भी उतनी ही दी जाती है। उन्होंने यह राशि बढ़वाने के लिए जम्मू-कश्मीर सरकार से कई बार गुजारिश की। इधर-उधर भी हाथ पैर मारे, लेकिन सभी प्रयास बेकार साबित हुए।
उन्होंने कहा, मुझे शर्म आती है कि मैंने अपने देश की सेवा की। सरकार हमारे साथ ऐसा रूखा बर्ताव करती है, मानो हम भिखारी हों। कैप्टन सिंह कहते हैं, जब एक आतंकवादी सरेंडर करता है, तो उसे 2000 रुपये मिलते हैं और मुझे देश की सेवा के बदले 166 रुपये। मैं अपमानित और असहाय महसूस कर रहा हूं। अगर सरकार का रवैया यही रहा, तो मैं परमवीर चक्र लौटा दूंगा।
इससे प्रमाणित होता है कि किस तरह से हमारे देश के रक्षक सरकार की अवहेलना और उपेक्षाओं के शिकार हैँ।
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