इतने रतन दिये हैं कैसे , जिससे देश महान् है ।
भारत की परिवार व्यवस्था, ही रतनों की खान है ।
इसी खान के रतनों के, इतिहास चाव से पढ़े गये ।
अध्यायों की अँगूठियों में, यही नगीने जड़े गये॥
सजे हुए हैं यही रतन तो , जन मंगल के थाल में ।
दमक रहे हैं ये हीरे ही, मानवता के भाल में
इसी खान के रतनों की तो, सदा निराली शान है॥
इसी खान में ध्रुव निकले थे, माँ ने उन्हें संवारा था ।
इस हीरे को नारद जी ने, थोड़ा और निख्रारा था
तप की चमक लिये जा बैठा, परम पिता की गोद में ।
कितनों का बचपन कट जाता, है आमोद प्रमोद में॥
नभ में ध्रुव परिवार कीर्ति का शाश्वत अमर निशान है॥
जाना था बनवास राम को, लक्ष्मण सीता साथ गये ।
कीर्तिमान स्थापित सेवा, स्नेह त्याग के किये नये॥
सौतेली माँ का मुख उज्ज्वल, किया सुमित्रा माता ने ।
था सोहार्द सगे भाई से, ज्यादा भ्राता भ्राता में॥
वह संस्कारित परिवारों का, ही अनुपम अनुदान है॥
ऐसे ही परिवार चाहिए, फिर से नव निर्माण को ।
जहाँ देव संस्कार मिले, धरती के इन्सान को॥
राम-भरत का स्नेह चाहिए, घर-घर कलह मिटाने को ।
दशरथ जैसा त्याग चाहिए, राष्ट्र धर्म अपनाने को॥
हो परिवार जहाँ नन्दनवन, वह भू, स्वर्ग समान है॥
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